1.
राग - झिंझोटी
ताल-
नयो होली खेलन को खिलारी रे, ऐसी भर भारी नैन पिचकारी रे
।।
नेक न लाज करत काहू की, ऐसी निलज गिरधारी रे ।।
इत गुरूजन की लाज करत उत, सास ननद डर भारी रे ।।
अब के फागन कैसे लाज रहेगी, मेरे पैंडे परो बनवारी रे
।।
2.
राग - भैरवी ताल -
मोपे बरजोरी रंग डार गयो री, सखी निडर अनोखो बटमार भयो
री ।।
हौं सखियन संग जात अचानक, मटकी पटक दधि ढार दयो री ।।
सही न जात नित-नित की ढिठार्इ, ये ही एक होरी को खिलार रही
री ।।
कुंवर स्याम गुन एक सखी सुन, छेर करत भयो जार नयो री ।।
3.
राग - खम्भावती ताल - चांचर
आज मैं हरि संग होरी खेलन गोरी जाऊंगी, सास लरो तो लरो ।।
मारूंगी भर पिचकारी तान के, और गुलाल अबीर सान के,
मुख मलूंगी, झगरो करूंगी, वो ननद हठीली जरो तो जरो ।।
गांव की गोरिन सों मैं न डरौंगी, बीच डगर वाहि गहि पकरौंगी,
हिय लगाऊं भर कौरी, सुनो री कोर्इ दारी नाम धरौ
तो धरौ ।।
4.
राग - काफी ताल – तीन
मोरी चुनरी बिगारी रंग डार डार, तासे बरज बरज रही बार बार
।।
एक तो रंग में चुनरी बिगारी, किनारी के कर दिए तार-तार
।।
मेरी सास सुनेगी देगी गार-गार, मोरी चुनरी बिगारी रंग डार
डार ।।
मेरी ननद हठीली देत आज तान, सगरी सारी लर्इ फार-फार ।।
हौं तो कछु न कही, गर्इ टार-टार, मोरी चुनरी बिगारी रंग डार डार ।।
अब न जाऊं घट भरन वार, मेरे कुंवर स्याम फिरे लार
लार,
वासे विनत करत गर्इ हार-हार, मोरी चुनरी बिगारी रंग डार
डार ।।
5.
राग - भैरवी ताल
– तीन
मोही मग निकसन देत न कान्हा, नयो होरी खेलन को फिरे री
दिवाना ।।
बड़ो री हठीला मेरी चुनरी बिगारी, भर मारी पिचकारी ऐसो निपट
अनारी ।
कुंवर स्याम सास सुनेगी देगी ताना ।।
6.
राग - भैरवी ताल - त्रितंल
होरी खेले मग गुमान भरो री कान्हा मोही सखि अब पनघट परी री जान ।
पग धरो न जात, मन अति डरात, याकी निठुरार्इ लंगरार्इ सुन सुनत ।
अब कैसे लाज रहे री, ब्रज में बसत, कुंवर स्याम भर पिचकारी
मारत तान ।।
कैसी बुरी रे बान ।।
7.
राग - झिंझोटी ताल
- तिताला, दादरा
मेरी रंग में भिजोय दर्इ साड़ी री, बाट चलत ऐसो निपट अनारी रे
।।
भर पिचकारी मारी नैनन में, निलज निलज दर्इ गारी रे ।
एक गांव को बसिवो सजनि, याते इतनी सहारी रे ।।
कबलौं सहौं नित की बरजोरी, है री कुंवर स्याम जंजारी
रे ।।
8.
राग - सुधरर्इ ताल – त्रिताल
गुरूजन हम संग रार करत हैं ।।
छैला जिन मारे पिचकारी, बिगरे साड़ी नर्इ हमारी,
देगी गारी लाख उधारी,
सास नणद कलिहारी,
कुंवर स्याम जिन हठ करिए, बलिहारि ।।
9.
राग - विहाग ध्रुपद ताल -
डार गयो पिचकारी चलत डगर, निपट निडर बरजत
वरजत ,
घूंघट मुख उधार देत, हंस हंस हंस लाज
लेत ,
मटकी फोरत किशोर अंग परसत करत रजत ।।
अब ना जाऊं पनिआं भरन , कागन बृज जाग
रहयो ,
आवत जात पकरत सुन हिय धरकन लरजत ।।
कुंवर श्याम गलियन गलियन, नगर नगर फिरत
लंगर ,
ढफ मृदंग ढोल लिए गरजत गरजत ।।
10.
राग - मालकौंस ताल - धम्माल
मोसे करत फिरत नित रार री जसोधा को नन्दन
कैसे निकसिये खेलत फाग गुवारन संग लिए ।।
मारत भर पिचकारी तान, करे न कान छली ।
।
घूंघट खोलत हिय टटोलत, होरी को मतवारो
कुंवर स्याम फिरत है भंग पिये ।।
11.
राग - हिंडोल ताल - धम्माल
कैसो री अनारी, भरत पनघट जल मारत
पिचकारी ।।
एसो निडर काहू सो न डरत, अपनी हठ को
बिहारी ।।
गागर फोरत आंचर जोरत बैयां मरोरत करत रार , रोकत
टोकत, आवत जात कुंवर श्याम भयो री भयो एक होरी की
खिलारी ।।
12.
राग - शोरठ ताल - एकताल
हिय धरकत जा कैसी जाऊं, सखि पनियां भरन
पनघट ,
तू तोहे निडर बीच डगर, भरे पिचकारी ठाडो
नटखट ।।
काल गर्इ दधि बेचन आवत, मम छेर लर्इ
घूंघट खोल
मारो बकल ये मुंहफट ।।
कुंवर स्याम लाज लगत, नैन गुलाल देत
कैसी
भरत, कौन करे वासे खटपट ।।
13.
राग - शुक्ल होली ताल - झपताल
कित गयो रि कित गयो रि कित गयो रि, रंग डार
सखी मोरी नर्इ चुनरि बिगारी, और कर की चुरियां
तोरी कुमकुमे मार । ।
'कुंवर श्याम के री गुण और कहा कहूं सखी,
उचक अचरा झटक दर्इ अंगिया फार। ।
आवें तो देखें री आज कैसी बहार ।|
14.
राग - गारा ताल – तिताला
जाने दे रे ना मार पिचकारी डगर बीच मेरी नर्इ
चुनर भीजेगी लंगर । ।
छल बल कर मोरी अंगिया तरकार्इ, लो मटकी धरकार्इ ,
खिलारी नयो भयो बृज में तू ही तों, 'कुंवर स्याम
काहूं सो न डरत कैसो है निडर ।।
15.
राग - धानी ताल - झपताल
हां री नणद तू मोसे कोहे नित करत झगरो ।।
जाओ जाओ अपने घर ये तेरी मोहि न सुहावे रगरो ।।
मैं क्यों ना जाऊं खेलन होरी , खेलत सब बृज की
गोरी ।
तू मतवारी फिरत दाऊ के संग, तेरी लागै है कहा
धगरो । ।
तू खेले बलदाऊ के संग, मैं खेलूं कुंवर
श्याम केर पकर ,
16.
राग - भैरवी ताल - धम्माल
खेलत होरी ठाडो अरी मेरी पौरी,
कहो कैसे जाऊं दधि बेचन को गोरी ।।
मेरे संग की सब दधि बेचन भोर निकस गर्इ
मोहि लग्यों अति जाडो ।
कुंवर श्याम से कैसे बचौंगी फागुन रंग अखाड़ो
।।
17.
राग - हमीर ताल - धु्रपद
मेरे री आवत आंगन धूम मचावत गावत होरी धमार । ।
मारत पिचकारी तान निडर, काहू की करे न
कान ,
गारी देत लै लै नाम अति लवार ।।
कहा कहूं कही न जाए, दधि बेचन बिन
रहयो न जाय ,
जाऊं तो हिय धरकत, डगर चलत करत करत
रार ।
अकथ कहानी कुंवर नयो खिलारी ।।
18.
राग - शोरठ ताल - तिताला
अरे रंग किन डारो रे ।
हमारी चुनर पै नैक हू लीनो डर, मारी पिचकारी भर
भोर हि भोर कीनो शोर वोर , दैखे नैक हू न मन
में दर्द बिचारो ।।
अैसो तू उमंग रहयो जीवन में मोसो , होरी खेलन के
चाव मन मैरो कि ,
परार्इ नारी गैल बचो, होरी के खेलन को
छैल मतवारो ।।
न देख्यो अैसो लंगर जैसो बृज में कुवर , गारी पत लेत मग
निपट अनारी ।
विनती करत हारी बड़ो ही निठुर जशोदा छोरा कारी
।।
19.
राग - भैरवी ताल - तिताला
मारो न भर पिचकारी जाऊं तोेपे वारी ।।
न फारो चुनर हमारी मैं तो अबही रंगार्इ
लरेगी जिठनियां बैरन देगी गारी ।।
आओ तुम मोरे घर प्यारे होरी खेलूंगी,
आवन न देऊं काहू द्वार पट दे लूंगी ।
सुन के नणदिया और दौरनियां क्यों ना जरो हमारी
।।
बीच डगर में न लाज बिगारो मोरी,
चरचा करेंगी बृजनारी दै दै तारी तोरी,
कुंवर श्याम सब बृज जानेगो है याकी वासे यारी
।।
20.
राग - भैरवी ताल - तिताला
तुम न मानोगे मैं दूंगी गारी, मारो मारो ना
पिचकारी बिहारी,
देखों जी देखो रहो जी रहो, भीजेगी साड ़ी
नर्इ बिगरेगी किनारी नर्इ ।।
सैन चला मेरी मटकी पकट दीनी,
नैन मिला हंस दोऊ कुच गह लीनी,
सास लरेगी कुंवर श्याम जो सुनेगी रे हमारी अनारी
।।
21.
राग - वागेश्वरी ताल - एकताल
होरी खेलत मग बिहारी, मै ं कैसे जाऊं
जमुनी री प्यारी ,
डगर डगर वगर फिरत लंगर, अचरा पकर रंग डार
, डार मारत पिचकारी
।।
पनघट पै ठाडो रहत नटखट री, अैसो है निडर
गोरी हम सटकत ,
वोह मटकत कर झटकत घट पटकत ,
देखो राम कुंवर श्याम पीछे परो अनारी ।।
22.
राग - घानी ताल - तिताला
मै कैसे पनियां लाऊं सखी री, लिये भर पिचकारी
ठाडो
बीच डगर, वा को देख डर भज
आर्इ तुमरे व जाउं ।।
जाऊं मै कहां, लेत लाज लगर वीर ,
देखो गर्इ लाज, कहां मुखरा
दिखाऊं ।।
कुंवर कन्हार्इ ने मचार्इ धूम, नगर गारी
देत बोलत अकर अकर,
ऐसे निपट अनारी से मैं खेलत डराऊं ।।
23.
राग - तोड़ी ताल - धम्माल
रंग भर भर पिचकारिन बीच डगर अंग परसत निपट
अनारी ।।
कूदत फिरत गलिन गोकुल की,
सखन संग लिये धूम मचावत गावत दै दै तारी ।।
मन चाहे ताहे पकर लेत है , गारी देत नहीं
मानत ,
नयो भयो होरी को खिलारी ।।
कुंवर श्याम बलराम नाम मेरो, लै लै टेरत ,
नणद हठीली ताने मारत मोको दारी ।।
24.
राग - विहाग ताल - झपताल
ये मोहि नीकी न लागे तिहारी मुरारी, डगर में चलत
भरमारी पिचकारी ।।
नयो खिलवार भयो फिरत है गलिन में,
कर पकर मोड मुरकार्इ चुरियां सारी ।।
होरी के दिनन मै नहीं तोहि अटक काहू की,
भोर तै सांझ लौ फिरत है अनारी ।।
सांगन मै जागत निश रागत फिरत है,
कुंवर श्याम हम समझावत तोहे हारी ।।
25.
राग - सुघरर्इ ताल - तिताला
बृज डगर डगर नगर नगर धूम मचार्इ री ।।
छैल रंगीलो श्याम छबीलो आंखन डार गुलाल,
लाल कैसे इतरारे री ।।
भवें कमान नैन रतनारे सुभग, कपोल बाल
घुंघरारे ।
लचकत उचकत फिरत गलिन में अंग लिपटे सैन चलावे
।।
ग्वारन को लै भोर फिरत है , अपनी मनमानी हि
सुनावें ।।
कुंवर श्याम जसुमति को छोरो, बलदाऊं रोहिणी
सुत गोरो ,
करत सोहत पिचकारी, गुलाल अतुल छवि
कहत न आवै ।।
26.
राग - भैरवी ताल - तिताला
बाट चलत नर्इ चुन्नरी रंग डारी रे ,
कैसो है बेदर्द बनवारी ।।
अैसो है निडर डरत न काहू सो लंगर,
अपनी धींगा धीगी करत है डगर,
ऐ मेरे राम ऐ मेरे राम,ऐ मेरे राम ।।
इतने दिनन मैं मोसे कबहूं न अटक्यों,
नित प्रति जात गलिन में कुंवर श्याम ,
आवत फागुन मतवारो भयो देत गारी रे ।
ए मेरे राम ए मेरे राम ऐ मेरे राम ।।
27.
राग - विहाग ताल - आडा चौताला
देखो तो भर मारी ·, रंग की पिचकारी · ,
सारी हमारी · नर्इ बिगारी ।।
होरी कहत फिरत वृज गलियन गलियन,
खेल न जाने झगरो ठाने, नटखट
निपट अनारी बिहारी ।।
गारी देत नहीं डरत निडर, अचरा गहे संग
फिरत लंगर,
कुंवर श्याम एक न मानत लाख जतन कर हारी ।।
28.
राग - कान्हरा ताल - सूल
जाने देरे जाने देरे जाने देरे हट हट मोसे काहि
मग करत झगरो,
नंद के छैल तू ही तो नयो बृज
मे भयो एक होरी को खिलारी रे ।।
कुंवर श्याम तोरी इतनी ढिठार्इ मोहि न सुहार्इ,
याहि नगर बसत हम तुम समझ सोच
नटखट निपट अनारी रे ।।
29.
राग - भैरवी ताल - तिताला
डारे जा डारे जा डारे जा रंग ,
मैं तो तोह देखूंगी नटखट कैसो है खिलारी।।
नैक सो रंग से गुलाल लिये,
मग करत फिरत है बरजोरी ।।
कुंवर श्याम हम तोरी ढिठार्इ,
बहौत सही अब सही न जार्इ,
अैसो देख्यो न सुनयो लंगर
जैसी तू है वृज में माखन को चोरी ।।
30.
राग - खम्माच ताल- तिताल
मेरी चुनरी विगार दर्इ ।।
तेने तो पिचकारी भीजो अंगिया हमारी रे अनारी,
ठैरा तो रहो ठैरा तो रहो ठैरा तो रहो रे,
छिपोगे कहां ढूंढ लाऊंगी,
सगरो नगर नंद कै कन्हार्इ करके ढिठार्इ ।।
जो तुम हो बनवारी मैं हूं बृजनारी,
खेलत होरी कि करत हो वरजोरी,
कुंवर श्याम न परो है मेरे सों काम,
पल में निकासू मैं ये तेरी लरकार्इ ।।
31.
राग - खम्माच ताल - तिताल
ये तोहे कहा वान परी, छोरा गैल आन
अचानक
पोछें ते अैसी मारी भर पिचकारी, देखो तो चूनर
सगरी बिगरी ।।
देखेगी नणद साड़ी देगी लाखन गारी,
तोहे बरजत में हारी, कुंवर श्याम तेरो
तो कछु गयो न मै ं बिन आर्इ मरी ।।
32.
राग - शोरठ ताल - तिताल
छाड दे मोहि घर लगर जान दे, मै तोरी
विनती करत हूं,
कर जोरे डारो न रंग नर्इ चूनर,
लरेगी नणदिया और जिठानियां देगी गारि ।।
मेरी भी मन चाहत है मै तोसे खेलूं होरी,
सास ननद की चोरा चोरी काहू दिन चलो कुंजन,
कुंवर श्याम इतनी कहो मेरी मान ले, मान लो प्यारे
बनवारी।।
33.
राग - मुल्तानी जौनपुरी ताल - तिताला
डगर चलत मार गयो रंग की भर पिचकारी,
देखो तो यह खिलारी ।।
सखन संग लिये गलियन गलियन, धूम मचावत फिरत
है निडर ,
मैं तो न जानू कौन कौ छोरा ये है निपट अनारी ।।
मोहे तो कहोरी या को नाम कहीं ठांय,
सुन्दर सलोनी सूरत अति प्यारी लागत,
हंस बोली गोरी कुंवर श्याम, नन्द को है वारो
मतवारो बनवारी।।
34.
राग - भैरवी (त्रिताल) राग - जौनपुरी (झपताल)
नंद किशोर लो मेरो री वैर परोरी ।।
मैं न जाऊं पनघट पे घट भरन लाज,
लहेगो होरी
खेलत मग खरो री ।।
तोसे कहा कहूं वीर वाकी मै निठुरार्इ,
कर की चुरिआं करकार्इ ,
कुंवर श्याम भयो वृज में खिलारी बड़ो री ।।
35.
राग - पीलू बरुआ ताल
- रूपक
मदन मोहन, मुरलीधर ठाडो, डगर खेलत होरी ।
पकर लेत रंग सों वोर देत ,
पनिआ भरन अब
कैसे जाऊ गोरी।।
फागन फागन घर सों न निकसोंगी,
लरेगी नणदिया मैं गारी लाखन दूंगी,
जावेगी लाज इनको कहा जाय,
कुंवर स्याम मोसे करत बराजोरी ।।
36.
राग - पीलू ताल - तिताल
आवत कहूं रंग भरी पिचकारी कर में,
तोसे कहूं ननदिया अब लेगो लाज ।।
मानेगो न काहू की अैसो निडर है री,
वो तो डारेगो रंग भीजेगी साड़ी नर्इ री,
आज कुंवर श्याम है लवार, कर रार बच के
निकस अपने घर चलो भाज ।।
37.
राग - तिलंग खमाज ताल- तिताल
फोर देर्इ मोरी जल की मटकि गोरी ।।
बाट चलत आज श्याम कर मरोर चुरिया
तोरी मारी पिचकारी आंखिन में,
मै कैसो निडर छैल देखो जोरा जोरी ।।
होरी के दिनन मै काहूं की अटक नाहि,
यासे और उधमी भयो कुंवर श्याम,
कैसी करूं घर हि रहौं लाजलैत
पनघट पे, करन लागो · लोरी होरी ।।
38.
राग - काफी ताल - तिताला
मार गयो री मेरे भोर भोर पिचकारी भर
नयन भये हैं लाल सूझे नाहीं मग कहो कैसे
जाऊं पनिया भरन ।।
चलो री दिखावो अपनो हाल
याकी मैयया को कैसो तै चढ़ायो हैं सीस
कुंवर श्याम काहू डर मानत नाही
करत फिरत है धूम गलिन धरन ।।
39.
राग - खम्माच पूर्वी ताल -
छाडो मेरो मग जल भरन जाने दे रे, मैं तोसे
कहूं बार बार हटरे हटरे ·, मारे ना मारे ना
पिचकारी ,
देखूं तो देखूं तो नैक मेरी चूनर बिगर · ।।
आवत फागुन तू तो इतराइन ला···गो,
नयो ही खिलारी होरी को हें कुंवर श्याम,
न कर मोसे झमेलो करूंगी तोहे चेरो अपनो,
होरी के दिन तो आने दे ।।
40.
राग - सोहनी ताल - दादरा
झगरो करत काहंू न डरत, नित मोसे अटके ।।
पिचकारी भरे ठाड़ो छाड़त न बोरे बिन,
कैसी करों मोकू तो जानो है पनघट पै ।।
जियरा जरत नणद लरत, पग न परत मन डरात
,
कुंवर श्याम कौरी भरत, अंग लिपटे और
मटके ।।
41.
राग - षट आसावरी ताल
तू आवत क्यों मोरे ले पिचकारी मोरे, तोसे न बोलूं
होरी न खेलूं काहे करे निहोरे ।।
आवन न दूंगी तोहे द्वार पर मूदंूगी,
बड़ो दुख पावत जिया लेत चितचोरे ।।
देगी गारी लाखन मोहि, जावो पैआ लागूं
मैं तोरे ।
कुंवर श्याम तेरो रंग लागे तो, फेर छूटे नाहि ं
जतन कर हारे नकारे भए गोरे ।।
42.
राग - गारा ताल-तिताला
अरी कैसी करूं माने नहीं नयो खिलारी
होरी को डगर चलत लाज लेर्इ ।।
कुंवर श्याम तो निडर गलिन गलिन, होरी होरी कहत फिरत,
रैन दिन अब तो न लाज करे,
मोहि बनेगी या लंगर को पकर,
होरी सू खेलूँ दर्इ ।।
43.
राग - सुधरर्इ ताल - तिताला
आवन दे आवन दे आवन दे रे, दिन होरी के
अबही से गैल फिरत धूम देत, निडर छैल जोवन
मतवारो ।।
धनु चरावत जात क्यों क्यों ना
गलियन में डोलै संग गंवार, वृजनारिन आवत
जात, नित छेरे कुंवर श्याम , मन समझ
सोच अब बड़ो भयो नाहि नेहवारो ।।
44.
राग - भैरवी ताल - दादरा
पनिआ भरन मोपे डारो न रंग ,
मैं तोहे समुझाए हारी रे ।।
लवार बरजत बरजत, कैसी नटखट भरमारी
पिचकारी रे ।।
सगरी दाम डारी कूप, मटकी मोरी फोर
दीनी,
मुख गुलाल कुंवर
श्याम मल,
सारी करकी चुरिआ ं तोर डारी रे गंवार ।।
45.
राग - भैरवी ताल - दादरा
दधि बेचन जाने दे ।।
ये मेरी मान लोरे सांवरे, सूधे सूधे चलो जा
डगर ,
तेरे जानी जो मोपे डारो रंग हठ न कर ।।
कुंवर श्याम कैस बान परी रे तोही ,
जाने न मोहि नित आवत जात मोही से करे रार लटन
पकर ।।
46.
राग - भैरवी ताल - तिताला
सुनो सुनो जी न डारो डारो न मोपे रंग,
चलत मग में बिहारी मोसे कहि कहि हारी,
न सुहावे ये खिलारी मोहि तेरो ढंग ।।
देगी नणद हमारी सुनेगी लाखन गारी,
देखेगी चूनर सारी रंग जो डारे अनारी,
हा हा खाऊं पैआ लागूं करो न रंग में भंग ।।
कुंवर श्याम पनघट पै न आयो कर,
डगर चलत पिचकारी न चलायो कर,
होरी के दिन जब आवोगे निडर खेलूंगी तेरे संग ।।
47.
राग - गौरी ताल - तिताला
मारी क्यों भर रे अनारी पिचकारी मेरे,
देखो तो सारी रंग में बिगारी ले रे ।।
कुंवर श्याम तुम अति पे उतर आए,
करत बजजोरी मोही सों कौन सिखाये,
बीच डगर लागत लाज मैं भी
पकर कान मारूं गुलचा तेरे ।।
48.
राग - भीम ताल - झपताल
प्यारे तू मोसे काहे डगर करत नित रार रे ।।
होरी के दिन जब से आए भयो है गर हार रे ।।
हट परे हट परे हट जानत हूं तेरे मन की,
सहज अपनी कियो चाहत पर नार रे ।।
जो तेरे मन है खेलन की, तो मेरे घर आवे
क्यों ना ,
कुंवर श्याम देखूं कैसो होरी के खिलारी रे ।।
49.
राग - तोड़ी ताल - आड़ा
रंग भर पिचकारी जिन मारे,
मेरी दधि बिगरेगी, बार बार कही एक
न सुनत,
तू ही भयो बृज में खिलारी , नंद के दुलारे ।।
तेरे तो मन में हे कहा , सांची सांची
क्यों न कहत,
मन सकुचावत मृदु मुसिकावत, ठठोरी करत मग
कुंवर श्याम, अब हम जानी तेरे
मन की सब प्यारे ।।
50.
राग - भैरवी ताल - तिताला
सुन डगर चलत रंग नाडारे नाडारे, नंद दुलारे
बिगरे डगर साड़ी, घर होय रार होय
रार होरी के मतवारो ।।
सेयो हत फिरत लाल गलियन गलियन,
हम अबला वृज
वासिन कुंवर श्याम मुरली वारे ।।
कछु खेल ना जाने यो ही झगरो ठाने,
चल हट हट छाड गैल, पनिया भरन जान
देउ रे ।।
51.
राग - भैरवी ताल - तिताल
नर्इ चुनरी रंग बोर देर्इ आज,
देखो-देखो डगर चलत, कीनी वराजोरी मन
डरात
घर अब कैसे जाऊं लरेगी सास ।।
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