1.
राग - दरबारी कान्हरा ताल - त्रिताला
तुम जीते हम हारी ए बनवारी ।
जाओ अपने मंदरवा, भोर भोर हमसे लरो,
ठाड़े नीच डगर एैसे निपट
अनारी ।।
अपने मन में चतुर कहावत, लाज न आवत,
बात बात हम संग झगरत
तुम कुंवर श्याम कैसे जंजारी ।।
2.
राग - बिहाग ताल - धीमा
कुवन गुन रूस रहे हो, पुंछत उत्तर न देत ।।
कौन सौत बहकाए सिखाए तिरछे देखत, क्यों प्रणाम नहीं लेत ।।
जेते जग देखे उर लेखे, कारे भले न स्वेत
कुंवर स्याम नहीं मीत काहू के,
कोटिक करो क्यों न हेत ।
3.
राग - सोहनी ताल - झपताल
वाके गृह जाओ, तो हमारे न आओ, बात की बात पिया
काहे रिस खाओ ।
रैन दिन एक, चाहत कियो प्यारे, तुम प्रिय नित
होत कैसे कर दिखाऔ ।।
हमहूं जानत तुम बहुत हरि चतुर हो, जाओ झूठी शपथ
काहि खाओ,
इन ही बातन तिहारी कुंवर श्याम, सब गर्इ परतीत, बातें न बनाओ ।।
4.
राग - विहाग ताल - त्रितंल
काहे तुम वेणु बजाय के बुलार्इ हम,
अब दुर दुर करत हो ये कौन धरम ।।
सुर ता नाथ प्रिय, ऐसी करो न घात लगी
तन मन की आस न छुड़ावों मम ।।
कुंंवर श्याम बृजजन ताप-हरन,
ताप मोहि देत आज,
कैसो ये कठिन करम ।।
5.
राग - कलिंगड़ा ताल - तिताल
जिन बातन जिया ललचावत हो ।।
हम जाने प्रीत की रीत तिहारी
सब मनमोहन चलो हट जाओ, काहे झूठी बात बनावत हो ।।
हमसे कही अब ही आवत,
सारी रात तार्इ कहां तुम जागे,
हम राह तकत कुंवर श्याम, जाओ वाही के अब,
क्यों ना उन ही मान मनावत हो ।।
6.
राग - हमीर ताल - धीमा त्रिताल
काहे अनबोल, रहत हो अपने पिया संग, सखि कहत क्यों न मन खोल ।।
नित नित को रूसिवो न सोहत, मान घटत अनमोल ।।
नैक दोष मैं तो सन तोकूूं रोष करत अनतोल ।।
कुंवर श्याम गुण अजहूं न जाने, तुम तो रहो अनबोल ।।
7.
राग - हमीर ताल - धीमा त्रिताल
मचल रही री, प्रिया मान भरी
री अपने पिया संग ।।
रिस भरी बोलत, जाओ जी उनही के
गृह,
कुंवर श्याम जाने जी हम जाने तिहारे ढंग ।।
8.
राग - सोहनी परज ताल - तीन ताल
मोसे ऐंडो बे गैल छैल डोले री न बोलै ||
सुन प्यारी वाकी चितवन कारी हिय के पट खोले ||
कुंवर स्याम नेह करत ननद लख जलत
इकली पनघट नहीं जान देत
अमृत में विष घोले ||
9.
राग - पीलू ताल - तिताला
कर ले दर्पन, निरखो नैनन अपनो
आनन, मनमोहन दसन दाग
बेसर कपोल ।।
जाओ जी जाओ जी तुम वाही के घर, क्यों न रैन जगाए
और तिलक चढ़ाए,
कुंवर श्याम कछु लाज न आवत, अब बोलत हंस हंस
बैनन ।।
10.
राग - तिलंग
जाओ जाओ जी हटो, जिन मेरी बहियां
गहो।।
रंगीले पियरवा, कौन सौतनियां के
संग जागे सारी निश सांची कहो ।।
नेक न सुहात ढिठार्इ कुंवर कान्ह, जासे मन लागे
ताके घर रहो ।।
11.
राग - विहागड़ा ताल - त्रिताल
जाओ जी जाओ, हम जानी थारी
प्रीत सांवरिया ।।
हम से अवध कर रहे सौतन घर, कौन गांव की रीत
।।
लाख कहो तुम एक न मानूं, कुंवर श्याम है
कहा तिहारी परतीत ।।
12.
राग - विहाग ताल - त्रिताल
सगरी रैन तुम बिन तरफ तरफ बीत गर्इ, नहीं आए हम सों
कर छल,
ऐसो जो निपट निडर, सौतन घर रहे
प्रीतम प्यारे ।।
कहा परतीत जग तुमरी रहे, झूठी झूठी बतियां
कहे कुंवर स्याम,
जानी जानी हम, जाओ जी जाओ जी, रहो वाही की घर
अब जारे ।।
13.
राग - काफी ताल -तिताला
मान करे री काहे नार (सो मोरी आली)।।
बुलावें तोहे कुंजन में बनवारी
हा हा खाऊं पैंया लागूं,
उठ उठ चल चल प्यारी तन संभार ।।
कहिबे की नाही जो मैं तोसे कहूं री आज,
कुंवर स्याम तोरी चाहत सहत हैं
ऐसे पीतम से तो नित नित कैसी रार ।।
14.
राग - नायकी कान्हड़ा ताल - झपताल
कौन के काल की रात रहे सांवरे,
रैन अंधियारी तासे भलो पायो डाव रे ।।
हमसे दुरावत बातें क्यों बनावत,
जानत तुमरे सब जिय की कम रावरे ।।
अधरन अंजन, नैन महावर,
पीक कपोलन, बन्यो बनाव रे ।।
बलिहारी या छव तिहारी के कुंवर स्याम,
दर्पन लै नैक मुख तो निरखो मन भांवरे ।।
15.
राग - कान्हरा ताल - ध्रुपद
रैन के जगे आए हो मेरे, पग लटपटात सब
सिथल अंग ।।
वोह तो तिहारी बान कैसे कै छूटे, और होत जात नयो
नयो ढंग ।।
जाओ जी जाओ जी अब वाही के घर ।
क्यों न रतियां गंवार्इ, बतियां बनार्इ
वाके संग।।
कुंवर स्याम हम गंवार, कैसे कहो
जानें वर्न वर्न अति विचित्र तिहारे रंग ।।
16.
राग - स्यहान ताल - सूल
कौन सौतन घर रहे पिया प्यारे, रैन गंवार्इ हम
गिन गिन तारे ।।
अवध बदी फेर काहे न आए, तुम बतियन के कहा
पतियारे ।।
डग मग पग डोलत, नैन न खोलत, अहण भए लोचन
मतवारे तिहारे ।
कुंवर स्याम जाओ जी, मनभार्इ के भवन
में, तुम जीते हम लाख
बार हारे ।।
17.
राग - यमन कल्यान ताल - सूल
जरत मन शिशिर तन लोचन अरूण भवन
सौतन के रैन हरि रहे सुन सुन श्रवण ।।
भवन न भावत, नींद न आवत, जिय अकुलावत,
अब न आवत देउं कुंवर स्याम अपने सदन ।।
18.
राग - मालकौंस ताल - धु्रपद
ए तुम कौन के रंग, रस माते फिरते हो,
डगर डगर पनघट, नित नवल संग ।।
बातें बनाय बनाय करत,
और झूठी झूठी सौंहे खात,
मोहि न सुहात, यह निहारे ढंग ।।
कुंवर श्याम हम सों अवधि रैन की लगाय,
कहां सारी निश जागे, दूर भर्इ हमरे सब
हमरे मन की उमंग ।।
19.
राग - अड़ाना कान्हरा ताल- ध्रुपद
तेरो री चंद्रबदन, सुख को सदन मदन
मोहन,
रस बस करन मन हरन ।।
बदन कांति जगमगात, उडुगण पति धुति
नशात,
कियो अनंग मान भंग, चितवन सुरतरूणि
जरन ।।
भ्रकुटि कमान देख, इंद्रधनुष सरल
भयो,
गरल को गुमान गयो, उमाकांत लागे डरन
।
कुंवर श्याम गुण प्रवीण, अति अधीन ठाड़े
कुंजन चलो
मान त्याग, तोहि बुलावै
भवतरणिघरण ।।
20.
राग - खमाच का ताल - तिताल
न जारे पियारे सौतनियां के, ये मोरी मान, वासे लगन छोड़ो
कान्ह ।।
कुंवर कान्ह वाही के रहत हो, पूछत बात न सांची
कहत हो,
सोभा न पाओ दुलारे, मोहे नीकी लागे न
बान ।।
21.
राग - तिलंग ताल –
जानी जानी जी जानी जी, तिहारी हम घतियां
।।
कौन सौतन संग जागे सारी रतियां,
हम से बनावत काहे मीठी मीठी बतियां ।।
कुंवर श्याम घर घर के मीत तुम, निडर फिरत हो,
अरूण रहत मद सों भरी तोरी अंखियां ।।
22.
राग - देसी कान्हरा ताल - झपताल
कौन के ग्रह रहे प्यारे सारी रैन, अंग सब सिथल और
लोचन अरूण भये ।।
आंख काहे न खोलत सूधे क्यों न बोलत,
जाओ जाओ जाने जी, जाने सीखे यह ढंग
नए ।।
लाज हू न आवत, मृदु मुसकावत, पीक की रेख ठाड़े
कपोलन पए ।।
कुंवर श्याम रस लपंट, तुम निडर हो काहो
वाको नाम,
काकी भाम जाके गए ।।
23.
राग - पीलू ताल - तिताला
रैन के उनींदे हो तुम, कहो हरि कहां से
आए हो ।।
हमसे दुराव करत करत नटखट, सब हम जानी
बड़भागन वह नार, रैन सगरी जिन
लाड़ लड़ाए हो ।।
सोभा होत न इन बातन सों, सब परतीत जात
हाथन सों,
कुंवर श्याम उत्तर न देत, कहा चितवत मौन
लगाए हो ।।
24.
राग - बहार ताल -
जिन अटके मोसे बीच डगर ए प्यारे,
नन्द वारे विनती करत हम वारे , सबके नैनन खटके ।
25.
राग - बहार ताल - तिताला
तुम कौन देश ते आए हो ।।
भंवरा कपटी तुमरी परतीत
क्हा, हमरी क्यों विनती करत हो , किन चटशाल पढाये
हो । ।
बोलत चपल नैन मटकावत, छल की बात न मोहि
सुहावत ,
हटो चलो हटो वाही के घर जाउ, जा सौतन सीस
चढ़ाय हो । ।
कलियन कलियन के रस लेत फिरत तुम, विरहन की डार डार
घिरत रहत, कवहु मन एक पल
श्याम वरन
पीतांबर काछत कुंवर श्याम मन भाये हो ।।
26.
राग - भैरवी ठुमरी ताल - तिताला
तिहारे पैआ लागूं सैया मोरी मान ले ।।
ना जाओ वा
सौतनिआ के घर ,
जाके संग हंस करत चोरी चोरी बतियां ।।
सैनन सैनन वाहि बुलावो, इत उत निरखत मन सकुचावो,
सब हम जानी कुंवर श्याम घतिआं तोरी मान ले ।।
27.
राग - ताल - तिताल
तिहारे पैआ लागूं मोरी मान ले ।।
न जाना वा सौतनियां घर, जासे पनघट
पे ठाडे बातें बनावत बतिआं,
वो है जादूगिरनी करे चोरी मोरी मान ले ।।
हंस हंस बैरन नैन मिलावे, सैनन सैनन घर ही
बुलावे ,
जब हम सखी पनघट पे वाकी घतिआं मान
ले ।।
कुंवर श्याम जो वाके फन्दे जा परोगे तुम,
फेर न बजा सकोगे वंसिया की ताने तुम,
जे जाओ रतिआं मान ले ।।
28.
राग - शोरठ ताल - आडा
कहा परी तोहे बान लाडली,
अपने पिया संग मान करत हो ।
कर जोरत हम करत वीनती,
झूलन को क्यों अबार करत हो ।।
कुंजन कुंजन भौंरा डोलत,
जित तित डारन कोयल बोलत, तुम उदास बैठी मन
मार कर,
श्रृंगार क्यों उतार धरत हो ।।
उमड घुमड घिर घटा आर्इ वरषत,
पवन चलत परवा मन हर्षत, कुंवर श्याम ठाडे
बाट तकत ,
अमृत कलश में विष क्यों भरत हो ।।
29.
राग - हिंडोल विहाग ताल -
लाडली, काहे को करत मान
पिया संग ,
अब आयो सावन मिल झूलन, चलिए चतुर सुजान
।।
यह तो तुमरी उनकी होत रहत है,
बातन बातन हेरी फेरी अनबोली, जिन करिये तुम
गुण भूषण वह गुण खान ।।
हम तो हंै जैसी उनकी तैसी तुमरी, मन काहे रिस
खावत चितवत हो , क्यो ं भृकुटि
तान ।।
कुंवर श्याम साें अब चल मिलिये भामिनी,
वोह तुमरे तुम ही उनकी प्रिय तान ।।
30.
राग- खम्माच ताल - आडा चौताला
जिन बातें न बनाओ , तुम वाही के
क्यों ना जाओ ।।
पिय मन मोहन काहे झगरो करत,
मोहि न नीकी लागे ये तिहारी बातें न चलाओ ।।
31.
राग - जौनपुरी ताल - झपताल
अधर धर मधुर वसिया बजाय रहो री,
कहू छैल देखे बिन, कल न परत है मोरी
आ·ली ,
कैसे देखो री ना·य ।।
कैसी गरव भरी बाजत सौतनिया,
न गिनत काहूू अैसी स्वरन मैं रंग मगी ।।
कुंवर श्याम मन मानी, वा वैरनियां ने
अैसो जादू कीनो री,
कुछ कहो ना जाए ।।
32.
राग - कान्हरा ताल - धम्माल
कौन के भवन रैन जागे लाडले, मुकर कर ले
मुख निहारो नैन पीक रंगे ।।
हम से आवत वद, वाके घर जागे तुम
, नहीं काहू के
संगे ।।
तुम तो नवल रूप रस माते, त्रिया संग फिरत
लगे ।।
कुंवर श्याम मनमोहन, लेत थारे वचन कपट
के पगे ।।
33.
राग - कालगंडा ताल - धम्माल
कितने कर्इ हम जतन करे री ,
सैंया नहीं आए कौन सौतन विरमाए ।।
वे तो रूप लालची नटखट, वाही वैरन घर छाए
न ही देखे अैसे जग निर्मोही, प्रीत करे
पछिताये ।।
कुंवर श्याम आवे कहे देवो,
जाओ जी जाओ जी हम धाए ।।
34.
राग - जौनपुरी ताल - तिताल
ए कौन वान परी तुहे मोहन,
लागो मोहन फिर करत न लाज मन मै,
मतवारी और बावरी कहत, सब ताहने मारन
तान ।।
हम सों जिन बोलो संग डोलो,
मोहि न नार आपनी जान,
अपनो करो तो मान मिटाऔ, कुंवर श्याम
भगवान ।।
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