1.
राग - सुधरार्इ मल्हार ताल - तिताला
गरजत गरजत सखि बरखत बूंदन आए री
बादरवा उमड़ धुमड़ चहूं ओर गगन घहरात
और चपला हू चमकत।
चातक पिक और पपीहा बोलत,
कुंजन कुंजन मोरवा डोलत,
मैं बिरहन कुंवर श्याम बिन, रही मनमारे किन
बिरमाए ।।
2.
राग - कान्हरा ताल - तिताला
छिन उधरत छिन बरसत बदरा,
और गरजत पवन चलत सननन,
कहां करिए छिन चपला चमकत ।।
प्रीतम प्यारे अजहूं न आए,
पतियां हम भेजी बार बार,
ऐसे कठिन कठोर भए,
कुंवर श्याम बिन छतियां धरकत ।।
3.
राग - मल्हार ताल - एक ताल
बरसन को कारी घटा, ए सखी उमड़ घुमड़
चहूं ओर, पवन चलन लागी परवा, कुंजन नाचत मुरवा
।।
दामिनी की दमक गगन की गरज, हियरा बिदारत,
छिन चैन न चैनन परत ए सखि, कुंवर श्याम आवन
सुन, देखन ठाड़ी चढ़ अपने री अटा ।।
4.
राग - मल्हार ताल - आड़ा चौताला
गरजत घन बिजुरी चमकत मन डरावत ।।
सजनी रजनी कैसे कटे, पिया बिरहन निस
दिन मदन सतावत ।।
गगन घिर चहूूं ओर, छाए री कारें
कारें बदरा, बूंदन बूंदन बरसत
।।
कुंवर श्याम नहि आए सौतन मन मनावत ।।
5.
राग - काफी ताल -
छाए रही री चहूं ओर, गगन घनघोर घटा
कारी,
निश अंधियारी बिजुरी चमक, बिरहन मन अति
डरात ।।
सावन मनभावन आवन, कहि गए अजहूं न
आए,
कुंवर श्याम काहू सौतनियां बिरमाए, निस दिन
तरफ तरफ कटत न रतियां, जिए हिरात ।।
6.
राग - देसी तोड़ी ताल - तिताला
उमड़ घुमड़ आए री घिर, चहूं ओर छाए री,
सखि बादरवा, दामिनी चमकत जिय
डरपत ।।
निश अंधियारी सूने भवन में, कुंवर श्याम बिन
एक पल
परत न चैन पवन चलत झकझोर घोर सुन,
तरफ तरफ हिया लरजत ।।
7.
राग - पीलू धानी मल्हार ताल - तिताला
बरखत चमकत गरजत सुन सुन, मेरो निश दिन
जिया घबराये री ।।
सखि एक घरी पिय बिन नींद न आंवे, पल पल छिन छिन
तरफ तरफ,
मोहि कोर्इ न धीर धराय री ।।
बरखा दिन बीते नहि आए, किन बिरमाए, प्रिय कुंवर स्याम
बिरह सतावत कल न परत, सूनी सेज बिरह
सताय री ।।
8.
राग - सारंग मल्हार ताल - सूल
ए मेहा बरसन लागे री, सजनी चहूं ओर से
उमड़ धुमड़,
गगन घटा छार्इ और पवन चलत पुरवार्इ ।।
हम तो जरत हैं सखी विरह की अगिन में,
सौतन संग प्रीतम झूलत है कुंजन, वाके रस बस कैसे
भए कुंवर श्याम,
आवत नाहीं ब्रज हम ही अभागे ।।
9.
राग - मल्हार ताल - चौताला ध्रुपद
गरजत घन आए, री चहुं दिश ते
उमड़ घुमड़, घिर घिर
झुक बरसन लागे री, दामिनी दमक बिरहन
मन अति डराए ।।
पपीहा के बैन सुन, चैन नहीं मोय परत, तरफत दिन रैन
जिया,
उन्हें जाए कोर्इ समुझाय लाय ।।
मुरवा झिंगारत कोयल पुकारत चातक की धुन सुन
अकुलाय |
सावन में मनभावन आवत की अवध बदी
अजहूँ न आये कुंवर स्याम सौतन बिरमाये ||
10.
राग - मल्हार ताल - तिताला
बैरन नींद न आवे उन बिन, पावस ऋतु आर्इ
उमड़ घुमड़,
गरज गरज बदरा आ बरसन लागे री और चमके दामिन ।।
दादुर मोर कोकिला की कूक, सुन सुन हिया
लरजन लागी री ।
हम बिरहन की तरफ तरफ बीतन निश दिन ।।
माधव मधुबन जब से गवन कीनो, बृजजन तन लागी
बिरह अगिन ।।
कुंवर स्याम सौं कोर्इ हाथ जोर घोर इतनी विनती
जा कहो री
रैन घटत ना कटत तारे गिन गिन ।।
11.
राग – परज ताल - तिताला
उमड़ घुमड़ घन गरजत बरसत बैरनिया नींद न आवत
अपने पिया बिन मोरी आलि जिया तरफत ||
आवन कहि गए अजहूँ न आये सावन बीते मग निरखत ||
कुंवर कान्ह पिया अति कठोर जिया सौतन पग परसत ||
12.
राग - छायानट ताल - तिताला
रिमझिम रिमझिम बादरवा बरसन लागे री,
चहूं ओर से पिय बिन कलन परत एक पल।।
सूनी सेज पे नींद न आवत, दामिनी डरावत चमक
चमक,
कुंवर कान्ह सखि अजहूं न आए, कौन सौतन बिरमाए
कर छल बल ।।
13.
राग - सूहा मल्हार ताल -
जिन जाओ जिन जाओ जिन जाओ रे, प्रीतम प्यारे
बार बार,
कर जोरत, और बिनती करत, अब आर्इ पावस ऋतु
उमड़ घुमड़,
घन घोर घटा बरसन ।।
पग नहीं धरत धर की बहिरा जोगी सन्यासी बनजरिय
कुंवर श्याम तुमरो गवन सुन सुन हिया तरफत और
छवियां
लगी धरकत ।।
14.
राग - सूर मल्हार ताल -
गगन घन गरजन लागे री ।।
प्रीतम अजहूं न आए बिरमाए कौन सौतनियां, तरफ तरफ हियरा
निश दिन धरकत ।।
कुंवर श्याम सौं इतनी बिनती कोर्इ जा कहो री
मेरी, अब
ब्रज आवो बिरहन को कल सोवत न जागे ।
15.
राग - गौढ़ मल्हार ताल - तिताल
गरज गरज बूंदन बरसन लागे री ए मां·······, बैरनियां
दामिनी डरपावत मन, घरी घरी छिन छिन
चमक-चमक ।।
दादुर मोर करत शोर, और पीहू-पीहू रटत
पपीहाएमां,
हम बिरहन की परत न कल, कुंवर श्याम बिन
हियरा धरक-धरक ।।
16.
राग - मल्हार ताल - झपताल
उमड़ घुमड़ घन गर्जन आ···· ए री बरसत
नहनी बूंदन बिरह की अगिन नहीं बुझात बुझात ।।
मोरन की कूक हिया हूक ए कैसी भर्इ कोकिला
और पपीहा की धुन मोहि सखी अब न सुहाए ।।
बिन पिया कुंवर स्याम निश कल न परत छिन
17.
राग - स्याहाना मल्हार ताल - झपताल
जिया जरत प्यारी सुन तिहारी
कहत जो मदन मोहन नेह भंग की ।
तुमने प्रनतें कछु अन्तर बनत नाही
निसि चंद चांदनी सिंधु ते तरंग की ।
छाडो अभिमान है मान को मूल यह त्याग
हर कहो प्रिय मिलन के उमंग की ।
च्ल हंस कुंवर श्याम से मिलौ
क्यों न धार्इ ऋतु पावस जगावत अनंग की ।|
18.
राग - मल्हार ताल - तिताला
उमड़ धुमड़ गरज गरज बरसने आए री बादरवा
बोलन लागे दादुर मोर पपीहा, पिय सौतन घर
छाए।।
बिजुरी चमक चमक डरपावत
कुंवर स्याम बिन बिरह सतावत चैन न आवत
तरफ तरफ घरी घरी पल निश दिन यूँ ही गंवाये ||
19.
राग - हिंडोल ताल - तिताला
आर्इ गगन घिर घटा और बिजुरी चमक डरात
विरहन को प्रिय बिन घरी छिन परे न चैन
टपकत दिन रैन नैन ।।
आवत को दिन आज सखी अब हीं नहीं आए
कारण कौन भयो मन व्याकुल अति घबरावत
कुंवर स्याम को देखत हारी ठाडी ऊंची अटा ।।
20.
राग - कान्हरा ताल - तीन ताल
बादल की घनघोर । ए सखी सुन वन वन बोलत
है मोर और कोकिला चातक पिहु पिहु रटन पपीहा
चहुं ओर ।।
कहां कहूं इतने समुझाए देखो अजहूं न आए
कुंवर श्याम निपट निडर इति कठोर ।|
21.
राग - मियां की मल्हार ताल - तिताला
निश दिन कल न परत मोहे एक छिन ।।
ए मैं कहा कहूं सखि अपने री मन की उमड़ घुमड घन
गरज बिजुरी की चमक मन डरात हरि बिन ।।
सवन में मनभावन आवन कहि गए अजहूं न आए ।
ए सखि कुंवर श्याम राह देखत
बीते जात सगरे ये दिन गिन ।।
22.
राग - सोरठ ताल -
गरजन लागो री बादरवा
ए सखी हरि बिन एक पल नींद न आवे
चहुं ओर से अपनी उमंग में बोल रहे बादरवा ।।
कैसी कहूं अजहूँ नहीं आए उन बिन कौन करे आदरवा
।।
कुंवर स्याम ब्रज राज त्याग परे सौतन के जा
दरवा ।।
23.
राग - सूहा मल्हार ताल - तिताला
झूम झूम बदरवा घिर घिर आए पिय बिन अति ही डरावत
उमड़ घुमड़ बरसने लागे री गरज गरज गरज ।।
कुंवर स्याम सौतन घर छाए आवन कहि गए अजहूं
न आए जिय घबरावत निश दिन लरज लरज ।।
24.
राग - केदार मल्हार ताल - तिताला
कल न परत मदन मन्मथन बिन एक धरी ।।
कैसी करी पिय अजहूं न आए घुमड़ घन घुमड़
बरसन लागी झरी ।।
पवन चलत सननन चहूं ओर और चपला
चमक-चमक मन डरात ए सखि बिन कुंवर श्याम
सूनी सेज पै तरफत बीती रैन सगरी ।।
25.
राग - स्याहाना ताल - झपताल
मुरवा किंगारे पपीहा पुकारे आए झुक घुमड़ घिर
उमड़ घन कारे ।।
दामिनी दमक हिय डरत न परत कल सुन बजत इन्द्र के
नगारे ।।
मन तो उमग करत स्याम संग मिलिये वह रहे छाए
कुविजा निडर छारे ।।
भए निडर अति कुंवर स्याम नहीं आवे बृज वीते री
जात पावस के दिन सारे ।।
26.
राग - गौड ताल - झूमरा
बिन पिया मोरा जिया तरफत सजनी निश दिन घरी पल
छिन
उमड़ घुमड़ घिर घटा छार्इ और बिजुरी चमक
मन डरपत कुंवर स्याम नहीं आए किन सौतन जादू
किया ।।
27.
राग - मियां की मल्हार ताल - आड़ा चौताला
आए री घन गरजत बरसत सुन सुन लरजत मोरा हिया ।।
कुंवर स्याम बिन ए सखी एक पल कल ना परत
नींद न आवै सूनी सेज हम विरहत तरफत ।।
28.
राग - मल्हार ताल - तिताला
कहो कैसे करिये छा·····र्इं बरषन को छटा
वीर चहुं ओर हरि बिन विरहा तन जरात ।।
झूम झूम बादरवा बरसत नैना टपकत लागे री
कुंवर श्याम बिन और बिजुरी चमक चमक मन डरात ।।
29.
राग - शोरठ ताल - तिताला
बरसन आए री बादरवा उमड़ घुमड़ गरजन लागे
निरख निरख कुंजन कुंजन नाचत मुरवा और बोल
दादरवा
हम बिरहन बैठी मन मोर पिया आवत को बार निहारे
कुंवर श्याम बिन कौन करे सखी हमको आरवा ।।
30.
राग - गौड ताल - झपताल
उमड घन घुमड़ चहुं ओर से बरसन आए री उन बिन
लागों री मन तरसनदामिनी दमक चलत पवन पुरवार्इ
सघन कुंजन मोर बोलन हिय हर्षन ।।
जब से गर्इ पतियां हूं न भेजी ऐसे निरस भये देत
न दर्शन
कुंवर श्याम बिन पावस ही पावक भर्इ
हिय तपन मिटे न बिन पिया के पग परसन ।।
31.
राग - मल्हार ताल - झपताल
नैन झर लागे री सजनी जब से मधुबन गवन कीनो री
प्रीतम रैन दिन दर्श बिन जिया तरसत ।।
हम को लिखत जोग पतियां कुंवर स्याम
आप सौतन संग रह हंस हंस विवश निश जागे री ।।
32.
राग - मल्हार ताल - आड़ा चौताला
बदरा उमड़ घुमड़ आए री मैं बिरहन पिया के दर्शन
बिन निश दिन तरफत ।।
पवन चलत सननन डरपत मन कंपत तन
सुनो भवन निरख निरख हिय धरक भुज फरकत
घन घन दिन घन निश घन न धरी पल छिन
मनोगी जब सखी कुंवर श्याम आवैं तब जिय हरषत ।।
33.
राग - मल्हार ताल – तिताला झप
बरसन गरजन सुन सुन हरि बिन परत है न कल एक पल
रैन दिन ।।
कोयल की कूक पपीहा की हूक हिय धरकावत
नैन झर लगावत पिय अजहूं न आए
कुंवर श्याम बहिकाया ऐसी कौन सौतन ।।
34.
राग - गौड ताल - तिताला
बरसन आए री घुमड़ घुमड़ गगन सघन बादरवा
पवन चलत परवा और बोलन लागे री जिन तिन मुरवा ।।
विरह गरज सखी नहीं सही जात उमड़ उमड जोवन वहो
जात
कुंवर स्याम बस कियो सौतनियां वैआं डार गरवा ।|
35.
राग - मल्हार ताल - तिताला
ए सखी बादरवा बरषन लागे ।।
री नहनी नहनी बूंदन गरज गरज
चहुं ओर से और बिजुरी चमकत ।।
कुंवर श्याम नहीं आए कौन सौतन संग नेह लगाए
इक पल
छिन कल ना परत ।।
36.
राग - मल्हार ताल - तिताला
आए री घोर घोर घुमड़ गरज गरज घन यह वर्षन ।।
हम विरहन तरफत हैं री धरी पल पल छिन
निश दिन विन हरि दरशन
कुंवर श्याम नहीं आए कौन सौतन विरमाए
जौं जौं बीते जात पावस छिन तरस तरस
मेरे हिय लागी धरकत ।।
37.
राग - मल्हार ताल - खमाज
आए री बादरवा···· नहनी नहनी बूंदन
वर्षत ।।
और चमकत सुन गरजन पिया बिन मेरो मन लरजत ।।
नाचत मोर चहुं ओर करत शोर चातक पिकरा वीर ।।
हम विरहन कुंवर स्याम बिन री निश दिन तरफत ।।
38.
राग - मल्हार ताल - तिलवाड़ा
गरजत बरषत घन आए री मोहि पिया बिन
एक धरी कल ना परत ।।
तरफत हूं निश दिन पिय सूनी सेज और
बिजुरी डरपावत कुंवर श्याम कहां छाए किन बिरमाए
।।
39.
राग - कलिंगडा मल्हार ताल – रूपक तिताला
घिर आए बादर बिरहा के
पिया छाए सौतन घर जाके
बिजुरी चमकत बादर गरजत और झकझोर चलत पखा के
मोरा की शोर सुन मोरा हिय धरकत
चातक पिहू पिहू रटत सुना के
कुंवर स्याम बिन तरफत तनमन
बिलभर हे मधुबन कुबिजा के ।।
40.
राग - पीलू बरवा ताल - झूमरा
ए री सखी बादर छाए री ।।
मन भावन अजहूं नहीं आए वीर कौन सौतन बिरमाए ।।
कोर्इ सखी पिया संग झूलत हिंडोरे ।।
डारे गए बहिआ घूंघट खोले हमम न मारे परी ।
टनबोले हरि हम कौन गुनन बरसाए ।।
निश अंधियारी बिजुरी डरपावत पपैया पीहू पीहू
वचन सुनावत
कोयल कूक सुन नींद न आवत तरफ तरफ नैना झरलाए ।।
है कोर्इ ऐसो प्रिय हितकारी जय वाहे यह विनती
हमारी
विरह पीर सही जात न भारी कुंवर श्याम बिन दरश
दिखाए ।।
41.
राग - सुधरर्इ ताल - तिताला
पिया दरशन को जिया तरसै ।।
तरफ तरफ निश दिन बीतत कल कोर्इ जा कहो हर से ।।
एक तो सूनी सेज डरत मन दूजे विरह सतावत धरी फल
छिन
तीजे दामिन दमक हिम लरहत और गरजत धन बरसे ।।
दादुर मोर पपीहा को शोर सुन सुन न रहत चित
बहोरी जात
बिन कुंवर कान्ह नहीं रहत आन पति´ा न लिखी
निर्मोही कर से ।।
42.
राग - सुधरर्इ ताल - तिताल
पिया पास नहीं कछु आस नहीं घिर आर्इ घटा ऋतु
सावन की ।।
नहीं परत चैन बीतत न रैन पपीहा के बैन
सुन उठत मैन बरछी की ऐन सम लागत है
ये कठिन चमक दामिन की ।।
एसी वैर परी हमरे सौनन पिया आवत रोक लिए
स्खी उन भए हमसे विमन झूठी बातें सुन
क्हा बात परी मन भावन की ।।
हम यहां तरसत वो वहां बरसत सौतन परवस
नहीं आय सकत यह नीत तिहारी कुंवर श्याम
हमसे कही नेह निभावन की ।।
43.
राग - सूर मल्हार ताल -
छाए री गगन घन घोर चहूं ओर उमड़ घुमड़
ए सखी आयोरी सावन डरपावन निश दिन
बिहरन मन गरज गरज ।।
जैसी पवन चलत पुरवार्इ सघन द्रुम लता फूल छार्इ
ऋतु पावस आर्इ कुंवर श्याम बिन छतियां लागी
धरकन हिया लरज लरज ।।
44.
राग - कान्हरा ताल - झपताल
झूलन की बहार चलो सखी देखन चलिये ।
श्री राधे झूले कदम की डार ।।
उमड घन घोर घिर घटा नभ छार्इ ।
नहनी नहनी परत फुहार ।।
अपने री अपने मंदिर से आत सब
बृज की नार कर कर सिंगार ।।
झोटा देत डरत लाडली
कुंवर श्याम मिल गावत मल्हार ।।
45.
राग - स्याहना ताल - सूल
चलो री मिल देखन झूलें पिया प्यारी,
जमुना तट सघन कुंज कदम की डारी ।।
छार्इ उमड़ घुमड ़ घोर घटा कारी ।
फुहियन बरसत दामिन चमकत न्यारी ।।
कुंवर श्याम गावत मधुर मधुर सुर मल्हार,
वेणू बजावत रिझावत हंस भामिन बनवारी ।।
46.
राग - छाया नट ताल -
नवल लाडली झूलन आर्इ, नवल हिंडोले नव
निकुंज ,
बन ठन संग लीने नवल बाल री ।।
नवल जोबन श्रवणन नवकुंडल, नाक केसर नव
बेंदी भालरी ।।
नवल त्रिया वन झूलन आये, कुंवर श्याम
रसिकन रसाल री ।।
47.
राग - खमाज ताल -
झूलत प्यारी चलो देखो क्यों ना बृजनारी
जमुना निकट वंशी वट कदम की डारी ।।
राधा झूले ललिता झुलावै, मधुर मधुर सुर
गीतन गावै ,
कुंवर श्याम छिप छिप निरखत
हंस हंस कहत बलिहारी बलिहारी ।।
48.
राग - सुघरर्इ मल्हार ताल - तिताला
गरज गरज बदरा आये झूम ।।
चलो सैया अमरैयां डार हिंडोरा, हरियाली भर्इ भूम
।।
मुरवा झिंगारत पपीहा पुकारत, कोयल लेत नहीं दम
पर दम ,
ए मन भावन सावन आये बजत नगारे धूम ।।
दामिन दमकत फुहियन बरषत, हरषन लागे रूम ।
कुंवर श्याम डारें गर बैंया, बार बार मुख चूम
।।
49.
राग - मल्हार ताल -
अमरैया डारे गरबैया झू·····लत प्रीतम प्यारी
।।
चलो सखी सावन तीज सुहार्इ, उमड ़ घुमड़
घन घोर घटा
छार्इ चहुं दिश का····री ।।
जैसी बजत मृदंग मधुर, गावत धर अधर
मल्हार ,
वेणु सुर जमुना तट वंशीवट, कुंजन कुंवर
श्याम वृषभान कुमारी ।।
50.
राग - मल्हार ताल -
झूलत हिंडोरे राधे कदम की छैयां,
बदरा बरसन लागे फुहियां फुंहिया ं ।।
गावत राग मल्हार झुलावत, हंसत हंसावत नैन
मिलावत ,
मधुर मधुर सुर मुरली बजावत
कुंवर श्याम डारे गरबैंया ।।
51.
राग - विहाग ताल - तिताला
कौन गांव कहा नाम धुतिहारौ बृजनारी ।
राज सुता संग झूलन चाहत, नर्इ झूलन हारी
।।
वोह गूुण सागर रूप उजागर, तू कहा गाय
सकत उनके संग,
वह तन गोरी तू तन कारी ।।
आस न रखो उनके संग झूलन की,
बार बार तोहि समुझावत हम हारी ।।
कुंवर श्याम बिन कौन झुलावे
जिनके बस वृषभानु दुलारी ।।
52.
राग - खमाज ताल -
बांकी प्यारी की झूलन बरनी न जाय,
मन हरन निरख लियो चित चुराय ।।
बलिहारी बलिहारी कहत प्यारो, मान लेत मुसिकाय
।
कुंवर श्याम हंस वंसिया बजावत, राग मल्हार सुनाय
।।
53.
राग - विहाग ताल - तिताल
ठाडे झोटा देत बिहारी, झूले राधाप्यारी
।
जमुना निकट वंशीवट कदम की डारी ।।
कोर्इ गावत, कोर्इ मृदंग
बजावत ,
कोर्इ नाचत हंस हंस दै तारी वृजनारी ।।
कुंवर श्याम घर वेणु बजावत,
तान लेत मृदु नीकी प्यारी प्यारी ।।
54.
राग - केदार ताल -
कदम की डारी पिया प्यारी, हिंडोरे झूलन आए
।
सघन कुंज द्रुमवेली प्रफुलिलत वरन वरन ।।
उमड़ घुमड़ घन घोर घोर गरजत।
पवन चलत सन नन नन नन ।।
और दामिन दमकत हिलमिल गावत ।
कुंवर श्याम मल्हारी ।।
55.
राग - हमीर ताल -
काहे को इतनो मान करत तुम, प्यारी मदनमोहन
संग ।
अब झूलन को आर्इ री जात है अबार ।।
वे नटनागर सुंदर झूलन आए तुम राज कुंवर।
गुण सागर काहे करत रार ।।
कर जोरत तुम सों विनती करत,
कुंवर श्याम पल नहीं धीर धरत ।
जिया अकुलायो जात बार बार ।।
56.
राग - काफी पूर्वी ताल - तिताल
डारो डारो री कदम की डार, हिंडोरे आज झूले
राधे प्यारी ,
आवेंगे आवेंगे वनवारी छवि देखन को, चलो बृजनार ।।
गगत घटा धिर आर्इ कारी, चमक चपला हूं डरावत
।
पवन चलत पुरवार्इ झकाझोर, नहनी चलत फुहार
।।
मधुर मधुर मुरली बजाय, रिझाय कछु गाय
गाय ,
कुंवर श्याम मृदु
मुसिकावें, हंस नैन मिलावें , होवे आनंद अपार
।।
57.
राग - सूहा मल्हार ताल - तिताल
झूलत हिंडोरे प्यारी कदम की डारी ।
ए री धिर आर्इं चहुं ओर घटा सी सुन्दर सुकुमारी बृजनारी ।।
उमड घुमड घन गरजत बरसत, बिजुरी चमकत
न्यारी ।
नाचत मोर पपीहा बोल, कोयल सघन
लता री ।।
कुंवर श्याम ठाड़े छबि निरखत, हंस हंस कहि
बलिहारी ।।
58.
राग - मल्हार ताल - तिताल
उमड़ घुमड़ गरजत घन बरसत आए ।।
अब प्यारी झूलो री हिंडोरा चल सघन कुंज ।
पवन चलत पुरवार्इ और मुरवा शोर मचाये ।।
बृज नारी सव गावत ठाडी, मधुर मधुर मुरली
धुन न्यारी ।
कुंवर श्याम गावत मल्हार मुसिकन सबके मन लेत
चुराये ।।
59.
राग - मल्हार ताल -
चलो डारो री हिंडोरा सखी, चलो कदम की डार
।।
बादर बरषत विजुरी चमकत, नहनी नहनी परत
फुहार ।
तुम गावो मै वेणू बजाऊं गाऊ ं सुनाऊं राग
मल्हार ।
वीणा वेणू मृदंग सारंगी, ताल बजावे बृजनार
।।
फूलन के बाजू बंद, फूलन के कंठा , और फूलन के हार ।
कुंवर श्याम सुन सुन मृदु बतियां, कहें गरबांही डार
।।
60.
राग - सुघरार्इ मल्हार ताल
-
अरे ए ना जारे , ना जारे ना जारे
पिया प्यारे ,
हम कर जोरत बार बार,
उमड़ घुमड ़ चहुं ओर लागे घन बरसन ,
और आयो सावन मन भावन ।।
वर्षारुत सब त्रिया पिया संग ,
झूलत हिडोर हिल मिल,
तुम विदेस जिन जावो
कुंवर श्याम हम लागे पांय तिहारे ।।
61.
राग - शोरठ ताल - तिताल
घिर घिर झुक झुक बरषन आर्इ घटा ।
चलो प्यारी मिल झूला झूलें कदम डारी ।।
पवन चलत पुरवार्इ जैसी वृन्दावन घन छार्इ ,
जमुना निकट वंशीवट डारो री हिंडोरा,
वाट देखत वृजनारी विहारी ।।
मृदंग बीन सहनार्इ रबाब,
ताऊस ताऊस मुरज सितार, वोताल बृजवाल
बजावत ,
कुंवर श्याम मुरली की तान लेत सुखकारी ।।
62.
राग - शोरठ ताल - आडा
ए नये रंग नये ढंग, पियारी कदम की
डारी झूले,
झोटा देत विहारी ।।
कोर्इ नाचत कोर्इ मृदंग बजावत,
भाव बतावत सबन रिझावत, कोर्इ सखी नाचत
दै दै तारी ।।
कुंवर श्याम मृदु बंसिया बजाय बजाय रिझाय,
तान लै मोहि लेर्इ सगरी बृजनारी ।।
63.
राग - खमाच मल्हार ताल - तिताल
कौन नर्इ आर्इ यह झूलन हार,
सखी री मै तो याहै जानूं न पहचान ंू बृजनार ।।
श्याम बरन मृग सै नैन, भवे ं कमान मधुर
बैन ,
हंस हंस एकटक निरखत चाहत, हम संग झूलन नार
।।
नंद गांव को वास बतावत, सांवरी अपनो नाम
बतावत ,
कर जोरत है बार बार ।।
बात कहत नेह करत, राजकुंवर जान परत
, याकि छवि
है कुंवर श्याम अनुहार ।।
64.
राग - मुलतानी ताल - तिताला
छार्इ गगन झुक झुक झूम झूम कारी घटा,
चलो प्यारी झूला झूलें री
बिजुरी चमकत पवन चलत पुरवा
पवन चलत सननन सननन, उमड घुमड घन
गर्जत घननन ,
कुंवर श्याम संग गावो मल्हार, जमुना निकट जहां
वंशी वटा ।।
65.
राग - मल्हार धु्रपद ताल - चौताला
घन गर्जत आये, चहुं ओर गगन छाये
,
आयो री सावन सखी, झूलन की अब बहार
।।
सुन बादर की घनघोर, दादुर मोर क रत
शोर ।
पवन चलत झकझोर, बिजुरी चमके बरसे
घार ।।
झूले सुकुमारी, वृषमान की दुलारी
,
जहां लीने ब्ृाजनारी संग, फूलन गर डारे हार
।।
चितवन मन चोर लेत, कुंवर श्याम झोटा
देत
मंद हंसत अधर धरे, गावत मुरली
मल्हार ।।
66.
राग - तिलक कामोद ताल - तिताला
चलो झूले री वृजनार कदम की डार ।
सावन तीज सुहार्इ मन मै बहार ।।
राधे झूल रही सखियन संग,
पग जोरे किये नवसत सिंगार ।।
उमड घुमड घन जित तित गर्जत,
और बरसत कैसी नहनी परत फुहार ।।
कुंवर श्याम ठाडे री बजावें
मुरली में मधुर मधुर मल्हार ।।
67.
राग - मल्हार ताल -
झूले चलो प्यारी अंबुवा की डारी सब ठाडी बृजनारी ।।
कैसी उमड घुमड घिर गगन चहुं ओर छार्इ घटा और
बिजुरी चमके न्यारी ।।
हरी हरी भूम सुहावनी लागत मन चाहत झूलन कौ
ए री विलम न कर, उठ उठ कुंवर
श्याम वंसिया बजावें प्यारी प्यारी ।।
68.
राग - कान्हरा ताल - झपताल
चलो क्यों ना प्यारी कदम की डारी ।।
झूलैंरी हिंडोरे सावन तीज सुहार्इ ,
बाट तकत कुंजन ठाडे री बनवारी तिहारी ।।
उमड घिर घुमड चहुं ओर, घन घोर घटा छार्इ
री ।
दामिनी हूं दमकत, चलत झकझोर पवन
पुरवार्इ न्यारी ।।
विलम जिन करो, पग वेग अब धरो , बड़ी वेर भर्इ
जान री ।
सब कुंवर श्याम संग झूल रहीं गीत गावे ं
वृजनारी ।।
69.
राग - शोरठ ताल - आडा चौताला
राधे चलो झूलन की आर्इ बहार ।।
कदम के वन कारी पीरी घटा गगन छार्इ बरखे बूंदन धार ।।
सघन कुंज द्रुमवेली प्रफुलिलत, और मुरवा चहुं
दिश करत झिंगार ।।
वृज की नार, मिल वन ठन आर्इ ,नवसत साज
सिंगार।।
कुंवर श्याम ठाडे मग निरखत मिलो क्यों ना प्राण अधार ।।
70.
राग - खमाच ताल -
सघन कुंज चलो देखो, झूलें राधे
प्यारी ,
जमुना निकट वंशीवट, जुरि आर्इ सब
वृजनारी ।।
उमड घुमड घिर घिर झुक छार्इ घटा कारी ।
पवन चलत सनननननन, बिजुरी चमके
न्यारी ।।
चातिक पिक मोर शोर गगन घोर चहुं ओर,
कोकिला पुकार रही
कुंवर श्याम झोटा देत, कहि कहि बलिहारी
।।
71.
राग - मल्हार ताल -
राधे तो हिंडोरे झूलै, धीरे धीरे जमुना
लेत हिलोरे ।।
कैसी कहूं सखी री वाकी प्यारी प्यारी छवि, कहिन जात चितचोरे
।।
उमड घुमड घन घोर घोर,
गरजन लागेरी और दामिनी दमकत।
पवन चलत झकझोर चहुं और
मन डरात फिरें कुंवर श्याम दौरे दौरे ।।
72.
राग - खमाच ताल - तिताल
अरी घन घोर घटा घिर आर्इ ।।
पवन चलन लागी फुअियां झरन लागी,
दामिनी चमके चलो झूला झूलें अमरैयां मार्इ ।।
गावो री मल्हार झुलाओं पिया प्यारी
रितु सावन की कैसी छवि छार्इ ।।
कुंवर श्याम वेणु बजावें,
अधर धर मधुर तान सुनावें
तव आनन्द उर न समार्इ ।।
73.
राग - कान्हरा ताल -
प्यारी कहा कहूं, तिहारी छवि वरनी
न जाय ।।
मन हरत पल न टरत,
चित सों हा हा खाऊं एक दिन,
मोहे तो झुलाय लेहु ब्रज राज,
कुंवर अति मन ललचाए ।।
उमड घुमड़ घन गर्जत बर्सत,
और पवन चलत सननन सननन,
चपला की चमक देख देख,
कुंवर श्याम जिया अति अकुलाय ।।
74.
राग - सुधरर्इ ताल - तिताल
पीहू पीहू पीहू पपिहा पुकारे।।
ए सखी आयो री सावन,
वर्षन लागे बदरा उमड घुमड,
अजहंू न आये प्रीतम प्यारे ।।
चतुर सुधर अैसो कुंवर श्याम,
परबस भए आवन नहीं दीने।
अब पावस आर्इ, उन बिन
कहो कैसे कटे रजनी विन तारे ।।
75.
राग - ताल - आडा चौताला
झूलत हिंडोरे राधे कदम की डारिया ं
मुरवा झिंगारे कोकिल धुन न्यारियां,
कोर्इ गावत मृदंग बजावत,
कोर्इ सखी नाचत दै तारियां ।।
उमड घुमड गरजत बादरा,
बरसन लागी बूंदे सुखकारियां ।।
कुंवर श्याम छिप छिप झांकत
मृदु मुसिकन अलकें घूंघर बारिआं ।।
76.
राग - खमाच ताल - दादरा
चलो राधे प्यारी, ठाडे बनवारी ,झूला झूलन की
बहार ।।
तिहारी बाट निहारें
उमड घुमड घन आये,
चहुं दिश छाये ,सुन मोरन की
झिंगार ।।
मान ना कीजे ताहने ना दीजे ,सावन के दिन बीते
जात।
तुम रानी राजा कुंवर श्याम दूल्हा दुल्हन की बलिहार ।।
77.
राग - बिहाग ताल
आज कैसी झूलन बहार ।।
राधा प्यारी झूले कदम की डारी, चलो चलो बृजनार
।।
उमड घिर घुमड घटा गगन, कारी पीरी झूम
झूम छार्इ ।
पवन चलत परवार्इ मुरवा झिंगारें, पपीहा पुकारे और
वरषें धार ।।
कुंवर श्याम भीजन कुंजन औ, वेणु बजावत, प्यारी को रिझावत
,
गावत सुकुमारी दै दै तार ।।
78.
राग - शोरठ ताल – एकताल तिताल
दादरवा मोर कोकिला करत शोर,
सुन सखी आयो री सावन, मन भावन बिन ।।
पवन चलत पुरवार्इ सननन,
पपीहा पुकारे झींगरवां झिगारे झननन ।
कल ना परत दिन रैन , मैन दुख सहयो न
जात,
कुंवर श्याम बिरमाए किन ।।
79.
राग - शोरठ ताल - एकताल
घुमड घन घोर छाए चहुं ओर, पवन झक झोर चल
रही।
सुन सखी पिया बिन, बिजुरी चमक मन
डरत ।।
दादुर झिंगुर करत शोर, कुंजन बोलत
कोकिला मोर ।
कुंवर श्याम भए कठोर, सौतन के पग परत,
सुन सुन जिया जरत ।।
80.
राग - मुलतानी ताल - तिताला
छार्इ घन घोर उमड घुमड, घिर गगन कारी घटा,
सजनी हर बिन निश नींद न आवत
और बिजुरी चमक मन डरात ।।
झूम झूम घन वरषत,
मेरो हिय लरजत बिन कुंवर श्याम ।
कोर्इ जा कहो री कर जोर जोर,
बिनती मोरी, विरहन विरहा जरात
।।
81.
राग - मियां की मल्हार ताल - तिताला
जाओ जाओ न डराओ जिया बदरा,
तोरी विनती करत मै हारी ।।
गरजन सुन सुन विरहन को हिया लरजत
पिया बिन मन न जरा ।।
कुंवर श्याम पतियां हूं न भेजी,
अैसे सौतन कुबजा बिरमाए।
अजहूं न आए अति कठोर
मन बैरन जादू करा ।।
82.
राग - मल्हार ताल - तिताला
बरषन आये बदरा एरी उमड घुमड घिर
गरजत ।।
दादुर मोर करत शोर, चहूुं ओर दामिनी
दमकत।।
पिया बिन मन डरात, तन जरात, निश कैसे कटेरी
कुंवर श्याम बिन हिया लरजत ।।
83.
राग - मल्हार ताल - आडा
गरज गरज उमड घुमड घन वर्षन लागे री ।।
सजनी पिया बिन बिजरी डरपावत,
मन अकुलात ए री ।।
पवन चलत झकझोर, करत शोर मोर चहुुं ओर,
पपीहा पीहू पीहू पीहू पुकारत
रैन सूनी सेज तरफत जिया घबरात ए री ।।
84.
राग - मल्हार राग - तिताला
छाए री गगन घोर चहुं ओर घन,
उमड घुमड ए सखी आयो री सावन ।
डरपावत विरहन के मन निश दिन गरज गरज ।।
अैसी चलत पवन पुरवार्इ,
सघन द्रुमलता फूलन छार्इ, ऋतु पावस आर्इ ,
कुंवर श्याम विन
छतियां लागी लरज लरज ।।
85.
राग - वागेश्वरी ताल - तिताला
उमड़ घुमड घिर घटा कारी,
ए री गगन छार्इ आली री ।
कुंजन कुंजन करत शोर मोर और,
पपीहा करत पीहू पीहू ।।
विरहन हिये लागी कटारी ।।
अजहुं न आये कुंवर श्याम न पतियां भेजी,
बड़े है कठिन, गोरी जिया तरसत ,
हिया धरकत तन तरफत घन वर्षत
टपकत नैन, परत न चैन कहूं
कहा री ।।
86.
राग - कान्हरा ताल - तिताला
सघन द्रुमलता छिप ठाडे, छबि निरखत
बनवारी।
क्दम की डारी झूलें राधा प्यारी ।।
जैसी चलत पवन पुरवार्इ,
चहुं दिशा गगन घटा घिर छार्इ ।
कुंवर श्याम हुलसत देख देख ,
हिलमिल गावत सब बृज वनिता री ।।
87.
राग - मल्हार ताल - धु्रपद
चलो क्यों ना झूलन प्यारी ,
मदन मोहन बाट तकत ठाडे कुंजन ।
झूला डार आर्इ नार, कर सिंगार वरन
वरन ।।
उमड घुमड घटा गगन वरसत,
घन घोर सघन वन टपकत ।
सखि झरना झरत झरत
मगन शिखी नाचत, गावत कोकिल डरन
डरन ।।
88.
राग - ताल - ब्रहम ताल
झूलें पिया प्यारी आज हिंडोले, सखी कदम की डार
।।
अैसी उमड घुमड बादर गरजात पवन चलत पुरवार्इ ।
और बिजुरी चमक चमक नहनी नहनी परत फुहार ।।
कुंवर श्याम झोटा देत झुक झुक, हंस वेणु बजावत
रीझत वृजनारी कहत बलिहार बलिहार ।।
89.
राग - मालकौंस ताल - एकताल
झूलन जमुना कूलन, चलो चलो क्यों ना
प्यारी ।
कर श्रृगांर बैठी मनमार, काहि दुलारी ।।
छार्इ घनघोर चहुं ओर घटा कारी,
पवन चलत मन्द मन्द, बिजुरी चमकत
न्यारी ।।
आर्इ सब वृज नारि, बरन बरन पहरें
सारी,
कुंवर श्याम वाट तकत ठाडे वन तिहारी ।।
90.
राग - मल्हार ताल - झपताल
गगन छाए री उमड घुमड कारे पीरे बदरा,
आयो री सावन झूलन के दिन,
मन भावन नहीं आए ।।
दामिनी चमके चहुं ओर, पवन चलत झकझोर,
कुंजन कुंजन नाचत मोर, पपीहा बोलत ।।
कुंवर श्याम बिन विरहनि मन न सुहाए ।।
91.
राग - मल्हार ताल - तिताला
उमड घुमड घिर गगन छार्इ घटा कारी ।।
बिजुरी चमक चमक मन डरात,
पवन चलत पुरवार्इ, जैसी निश
अंधियारी ।।
मधुवन जबसे गए कुंवर श्याम,
वृज की सुध हूू न लीनी
धरकत हिय निशदिन कल न परत,
और विरह जरन अति भारी ।।
92.
राग - सोहनी ताल - दादरा
चलो बृजनारी कदम की डारी ।
आज तो हिंडोरा झूले राधा प्यारी ।।
गरज गरज कारी पीरी गगन घटा छार्इ,
पवन चले पुरवार्इ, बूंदन घन वरषत
बिजुरी चमकत न्यारी ।।
जमना कूल सघन कुंज बरन फूले फूल,
गावैं अनु ल स्वरन ठाडी बृजनारी ।।
कुंवर श्याम कर श्रृंगार, आये निरखन बहार
रीझ कहत लाल बलिहारी बलिहारी ।।
93.
राग - तिलंग ताल - तिताला
हिंडोरे हरि संग झूलत राधा प्यारी,
चलो री झूलन जमुना तट, कुंजन कदम की
डारी ।।
जैसी घिर उमड घुमड, गगन घटा छार्इ
कारी ,
तैसी पवन चलत पुरवार्इ, और चहुं दिश
बिजुरी चमके है न्यारी ।।
कुंवर श्याम हंस वेणु बजावत,
और गावत मल्हार मधुर मधुर सुर, मिल ठाडी तार
बजावत बृजनारी ।।
94.
राग - गौड मल्हार ताल - तिताला
गरजत घन टपकत वन मन हुलसावे
अब फूलन की बहार ।
प्यारी चलो झूले कदम की डार ।।
सघन कुंज द्रुमवेली, वरन वरन सुमन
सुुंगध ,
फैल रही जिततित मुरवा झिंगार ।।
कुंवर श्याम वेणु बजावत मधुर मधुर
तोही बुलावत बार बार ।।
95.
राग - भैरवी ताल - दादरा
कदम की डारी झूलत प्यारी, चलोरी चलो री
देखन बृजनारी, बादर की घनघोर और
बोलत मोर परवा झकझोर, पवन चल रही ,
गावत गीत हंस हंस झोटा देत
कुंवर श्याम बनवारी ।।
96.
राग - भैरवी ताल - तिताला
उमड घुमड घन घटा घिर आर्इ कारी,
झूले राधा प्यारी कदम की डारी,
वरष न लागो नहनी नहनी बूंद मेघ भार ।।
करो सिंगार अब विलय न कीजे,
वर्षा ऋतु सावन सुख लीजे, कुंवर श्याम ठाडे
बाट तकत
बार बार हम तोही कहत हारी ।।
97.
राग - ताल - झपताल
चलो री आज झूला झूलन राधे के संग,
सघन वन उमड, घिर घुमड घन , उमड घिर
घुमड़ घन, छाए री कारे कारे
गगन ।।
पवन परवा चल रही मृदु सनन सनन,
कोयल की कूक पीहू पीहू शिखी मन ।।
कुंवर श्याम ठाडे धर अधर बंसिया बजावे,
छवि निरख वाकी होत को लजित मन
98.
राग - सोहनी ताल - आडा चौताला
ए चलो वृजनारी झूले राधा प्यारी,
आज तो हिंडोरे कदम की डारी ।।
कारी पीरी घटा गगन घिर, आर्इ पवन चलत
पुरवार्इ ,
बूंदन घन बरषत और बिजुरी चमके न्यारी ।।
जमुना कूल सघन कुंज, कुंवर श्याम कर
श्रृंगार ,
झूलन आये, बार बार निरख
निरख
कहत बलिहारी बलिहारी ।।
99.
राग - वरवा ताल - तिताला
पग जोड़े ललिता के संग झूले राधा प्यारी ।।
देखों री देखो री कैसी छवि आर्इ आज,
कुंजन सघन ठाडे झोटा देत बनवारी ।।
कुंवर श्याम वंशी में बजावत
हंस हंस राग मल्हारी ।।
100.
राग - गारा ताल - एकताल
घुमड छार्इ गगन कारी घटा घनघोर,
बिजुरी चमकत, पवन चलत झकझोर ,
चलो झूलें प्यारी जमुना तीर ।।
पपीहा मोर कोकिला हूं गावत,
भीजे पात दु्रुम अति लहरावत, कैसी आर्इ बहार
।।
घुमड घन आये गगन छाये बादरवा,
क्ुंवर श्याम तव बाट निहारत ठाडे कुंजन घटा ।।
101.
राग - ताल - धम्माल
धीर समीरे जमुन तीरे, राधा प्यारी झूले
हिंडोरा
पिया संग चलो आली ।।
उमड घन घुमड चहुं दिश कैसी री,
कुंजन में छार्इ है बहार , मेहा बरषत टपकत
है डाली डाली ।।
102.
राग - सुधरर्इ मल्हार ताल - तिताल
बरषन आर्इ कारी बदरिया सजनी, गगन घोर गर्जत
और चमकत दामिनी, चहुं ओर भर्इ जात
दिन की रैन,
देख देख अब जिया घबरावत,
कैसी कहूं प्रीतम प्यारे अजहूूं न आये ।।
कुंवर श्याम सों कोर्इ इतनी जाय कहो,
पावस ऋतु आर्इ तुम विन अब, वेग पधारो
वृन्दावन कल ना परत
तरफ तरफ गोपिन विरहा सताये ।।
103.
राग - मल्हारी गारा ताल – सावारी
घिर आर्इ री छार्इ री, गगन घटा कारी ,
जैसी निश अंधियारी बिजुरी चमकत, डरपावत पिया बिन
नींद न आवत । ।
बरषा ऋतु आर्इ कहा करिए, कुंवर श्याम सौतन
के बस पपीए,
वृज नहीं आवे मन की उमंग, वही जात
हिया लरजत सुन सुन, पपीहा की हूक सखी
भवन न भावत ।।
104.
राग - मल्हार ताल - तिताला
गगन घुमड घिर आर्इ घटा कारी कारी,
सूनी सेज हरि बिन पलक न लागत,
मन डरात ए सखि दामिनी चमके न्यारी ।।
कुवंर श्याम हमरी अजहूूं सुध हूं न लीनी,
विरह सतावत दिन रैन न पल छिन,
परत चैन अब आर्इ वरषा ऋतु,
पिया बिना अति दुख विरह मारी ।।
105.
राग - मल्हार ताल - तिताला
बिजुरी डरपावे ए सखी पिय बिन, तरफ निश
नींद न आवे ।।
झिंगरवा झिंगारत मोर करत शोर,
कुंवर श्याम सखी भए अति कठोर, अजहूं नहीं आए
ए वीर करिये कहा, कोर्इ उनहि ं
मिलावे ।।
106.
राग - सूर मल्हार ताल - चौताल
चमकत घन दामिनि गगन घोर वर्षत बादर,
आए तरफत मन सखि प्रीतम दर्शन बिन ।।
सूनी सेज मन डरात, व्याकुल जिया
तरफरात ,
कैसी करूं कल न परत, लरजत हिया
विरहिन।।
दादुर वन मोर शोर, करत जरत तन धुन
सुन ,
चैन रैन दिन न परत, पीहू पीहू पीहू
रटत कामिन ।।
कुंवर श्याम अति कठोर, सौतन के चित चकोर
,
कब आवे सावन, आयो मन भामिन ।।
107.
राग - मेघ मल्हार ताल - तिताला
वर्षा ऋतु छार्इ सुनंग बर्सत मेघ रसाल
टपकत द्रुमवेली लता भीजत है दोऊ लाल ।।
दोऊ भीजै कदम की छैयां
अरी चलो देखो गहवर महिआं
टपकत नील पीत पट सुंदर ठाडे है गबबहियां
मोर मुकुट कौ छत्र बनावत बूंद बचावत सैयां
किशोरी रमण कीरत के प्यारे
अचक चलत गहिबहियां ।।
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