1.
राग - बहार ताल - ध्रुपद
आगम की नोरी ए सखि मदन सुभट नृप् समाज साज
विविध कर सिंगार जाको देख द्रुम द्रुम अति फूले
फूल ।।
डार डार पात पात पटपद जुर बोलत बिरछ पै गुमान
सौ
कोकिला हूं बोलत और मोर करत शोर जमना कूल ।
कुंवर श्याम श्यामा दोऊ सघन कुंज करें विहार
संग बृज नार
लिए वन वन निरत बहार और लिए बसंत करत आनंनद मूल
।।
2.
राग - बहार ताल - तिताला
सघन वन गगन पवन चलत पुरवार्इ री आर्इ ऋतु वसंत
आर्इ
फूलन छार्इ पेलरिया डार डार अंबुवन की कोयलिया
रही पुकार और मधवा बूंदन भर लार्इ ।
मुरवा बोलत कुंजन कुंजन कलियन कलियन भंवरा
वरन-वरन बिरवन को डरियन पै शुक पिक चातक कर
रहे पुकार हरष हरष हंस हंस निरखत कुंवर
कन्हार्इ ।।
3.
राग - हिंडोल ताल - झपताल
ए बंसत ऋतु आर्इ री मार्इ । वन सघन लता द्रुम
फूलन लागे कोकिला की ध्वनि सुहार्इ ।
कुंज कुंजन मोर नाचत करत शोर भंवरा फिरत दौर
चलत मृदु पवन सुखदार्इ ।।
4.
राग - मालकौंस ताल - झपताल
आज सखी आर्इ वसंत आनंद मै ।
गाओ मिल गीत पुनीत स्व रमंद मैं ।
वन सघन सुमन फूल वरन वरन मै के
और प्रिय पवन मृदु चलत स्वच्छन्द मै ।
चलो री चलो वगे क्यों ना छवि निरखो
मत परी री बौरी अनंग के फंद मै ।|
5.
राग - बहार ताल - सूल
निश दिन पिया विन देखो री तरफत जिया मोरा
अब कैसी करिये आर्इ ऋतु वसंत द्रुम डारडार बोलत
कोयलिया और कलियन कलियन बोलत हैं भौरां
कुंवर श्याम लोरी अजहूं न आए
भेज भेज पतियां हम हारी वार वार
नेह प्रेम उन सब हमसे तोरा ।।
6.
राग - बहार झपताल
चलो सखी री आज खेले बंसत हरि सो ।।
कैसी आर्इ बहार सघन कुंजन वर्ण वर्ण फूले सुमन
और खतन ही फूल सरसो ।।
शुभ लगन महूरत है अनंग दिन लिये प्रिया संग
सेहत कुंवर श्याम नहीं सम है ऋतु राज राधिका
बरसो ।।
7.
राग - बहार ताल - तिताला
डार डार पात पात झूले
अब देखो अजब बहार ऋतु आर्इ बंसत
घर नाहिं कंत उन बिन निश दिन कल ना परत ।।
भंवरा गुंजार कोयल पुकार सुन बार बार
अरी ए बिरह सतावत अति दुख पावत
कुंवर श्याम नहीं मानत री मोरी धरी धरी पल छिन
न हरत ।।
8.
राग - वंसत ताल - आड़ा चौताला
ए सखी बृज की नार हरि सग
अपने री अपने मंदिर पीत वसन
9.
राग - वसंत ताल - सूल
सारंग नैनी कोकिल मृदु वैनी हरि संग सब मिल
खेलन आर्इ वंसत
कुंजन कुंजन फूल दु्रुम फूलन सरसो लहराय रही
जिततित वन वन
मधुर मधुर गावत पिया रिझावत हंस हंस मुसिकावत
काम को जगावत हाथ न लिए वसत ठडी सब वन ठन ।।
शीतल मृदु सुगंध लिए पवन चल रही तरू डार डार
केकिल धुन कर रही और गूंजत अलिंगन गण
कुंवर श्याम गावत हर्षित तन मन ।।
10.
राग - बसंत ताल - धम्माल
खेलत आज वंसत कंध सो ।
नगरी मोद भरी मन मै ।।
कर वसत गावत वंसत और पीत वसन पहरे तब मै ।।
अनिर गुलाल उड़ावत नाचत धमकत ज्यों दामिनी घन
मै ।
कुंवर श्याम सग लागी फिरत बागन - बागन वन कुंजन
मै ।।
11.
राग - वसंत ताल - चांचर
कैसी वसंत कध घर ना ही विरह कियो तन पीत ।
सरसो हमसों लाज करत है सखी थे कहा अनरीति ।।
कुंवर श्याम कुविजा संग खेलता त्याग हमारी
प्रीत ।।
12.
राग - सोहनी वसंत ताल - एक ताल
परत न चैन नैन एक छिन प्रीतम प्यारे दर्शन
विन ए सखी अजहू न आए छार्इ बंसत
कुंजन वन सघन मगन कोकिला पुकार रही ।
मोर शोर करत हियरा सुन मीठे वैन ।।
13.
राग - वसंत बहार ताल - तीताला
चलो सखी पिय संग खेले वसंत अब आर्इ बहार
विरता वटन वटन के फूलन छाए भंवरा गूंजन लागे ।
डार डार कोयल कर रही पुकार ।।
क्ुंजन कुंजन मोर झिंगावत जहां तहां सरसो
लहरावत
ए सखी अपनी उमग मैं कुंवर श्याम बेजू बगावत
और गावत राग वसंत बार-बार ।।
14.
राग - बहार ताल - सूल
बोलन लागे री ऐ सखी भंवरा
अब गर्इ बंसत द्रुम डार डार फूल रहे फुलवा
विरहन तरसत सौतन मन हरषत ।।
सरसो लहरार्इ वन वन बिरवत के तरूण तला लिपटी
सुमन लगे वरन वरन कुंवर श्याम आवत चाहत
बृज बैरन बरजत ।।
15.
राग - साहिनी बसंत ताल - तिताला
उन विन न कहे सजनी रजनी दिन
कैसी करिये आर्इ वसत खेलत फूल रही सरसो
डार डार कोयल कुहकत और कलियन
कलियन भंवरा गुजांर
कूशे के द्रुम फूल रहे फूलन वन वन कोर्इ जास
कहो हरसो ।।
16.
राग - बहार ताल - तिताला
अंबुवन की डार डार सुन सखी कुहक रही
कौयलिया, मदमती और कलियन
कलियन भुर्इं भुर्इं करत फिरत भंवरा
मुरवा झिंगार रहे, चरस चरस पै राम
राम बोले मलिया ।।1।।
सरस हरस सो सरसों फूल रही पियारी
विरह सतावत दिन रैन न चैन परत, इक दिन
जिया घबरावत, सौतन घर छाए रहे
कुंवर श्याम छलिया ।।2।।
17.
राग - बहार ताल - एकताल
सखी हरि दर्शन को मेरी निश दिन तरसत अंखियां।।
अरी कोर्इ वेग मिलावे, उन बिन विकल रहत
तनमन,
धरी पल, आर्इ ऋतु वसंत
मन्मथ भेजत पतियां । ।
कुंवर श्याम सखी न सुहावे, एसे छाये अजहू न
आए ,
काहू सौतन विरमाये रस लपट, तरफत तरफत धरकन
लागी छतियां ।।
18.
राग - बहार ताल - झपताल
पिया के बिन जिया में नहीं चैन, दिन रैन एस जनी
।।
आर्इ बसंत बिना कंथ, यह कोकिला कूक
रही , नहीं परत
कल और धरी पल छिन, जरावै मन मैन री
।
विपन प्रफुलिलत सुमन, फूल रही सरसो ं
पवन , मृदु चलत
लहरात वन वेलरी, भंवरा गुजारत
मुरवा झिगांरत ,
विन
कुंवर श्याम झरना झरत नैन री ।।
19.
राग - हिंडोल ताल - झपताल
सखिन चल सघन कुंजन वन, कान्ह खेलै वसंत संग,
वृजनार गावत देत तान,
हरि लेत धर अधर वेणु नवतान ।।
नवल सरसो जिततित लहरात,
नवल कलियन नवल भंवरा गुंजार ।
नव कुंवर श्याम नव प्रिया
संग, लिये लिये वन वन निहारत करत गान ।।
20.
राग - बहार ताल - एकताल
वृंदावन सघन कुंज चलिये वृजनार,
कैसी बहार आर्इ ऋतु बंसत, भ्रमरा मद माते
डोलत और ,
अंबुवा मौला पे डार डार, कोकिला करत पुकार
।।
हरियाली खेतन में सरसो लहराय रही,
फूलन सों छार्इ वागन वन वन ,
वेलरी मदन जन्म के दिन अब आये,
रही हरष हरष कुंवर श्याम
मुरली में गावत वसंत बहा
21.
राग - बहार ताल - आडा चौताला
आर्इ ऋतु वसंत वन विहार छार्इ।
भंवरा गुंजारे फूलन अंबुवा, मौलाये जिन तित सखी
और,
डार डार रही कोकिला पुकार ।।
खग मृग सब मगन फिरत, सरसो ं
लहराय रही हरियाली,
निरख निरख कुंवर श्याम मन
हरषित संग बृज कुंवार ।।
22.
राग - वसंत ताल – ब्रहम
ए री आज वसंत वृदावन में खेलत बृजनार ।।
प्यारो वसन पीत भूषन पहरे, करे गर बैयां
करत केल,
वन वन प्रीतम के संग और गावत धम्मार ।।
कुंवर श्याम सजनी मुरली बजावत मीठी तान सों,
सुन रीझ रीझ तारी बजावत कहत सब बलिहार ।।
23.
राग - बहार ताल - तिताल
मेरी एक पल पलक ना लागे री ।।
डार डार कोयल की कूक सुन आर्इ, ऋतु वसंत री कंथ
विन ।।
इतनी जाय कहो कोर्इ हरसों सरसो ं फूल रही ,
फूलन फूलन करत केल मदमाते भंवरा, कुंवर श्याम
दर्शन को मन तरसत निश दिन ।।
24.
राग - बहार ताल - तिताल
आज सखी देखन चलिये,
वन वन फूली सरसों आर्इ वसंत की बहार ।।
अंबुवा मौलाये कलियन कलियन, भंवरा करत गुंजार
,
चलत समीर मंद कोयल कुहकत डार डार बार बार ।।
मुरवा करत वन शोर हरष सो ं शुक चातक
चकोर पिक डरियन डरियन, बोल रहे अति
प्यारी धुन
लागत कुंवर श्याम मुरली में लेत तान,
अधर धार अधर धार ।।
25.
राग - बहार ताल - सूल
वृंदावन जमुना कूले सखि अंबुवा फूले ।
मृदु पवन चलन लागी, द्रुम डारन कुहक
रही।
कोकिल वार वार अब आर्इ ऋतु वसंत सुन प्यारी ।।
चलो सखी हरि संग खेले मिल वसंत,
कुंजन कुंजन कैसी छार्इ बहार,
कुंवर श्याम श्यामा छवि निरखत प्यारी ।।
26.
राग - बहार ताल- तिताला
सुन सखी बोल रही कोयलिया बागन अंबुवन की डार ।।
अब हम जानी आर्इ ऋतु वसंत,
सरसो फूल रही जित तित, कलियन भंवरा कर
रहे गुंजार।।
हरियााली बिरवा लागी वाल, टेसू फूल रहे लाल
लाल ,
कुंवर श्याम संग लीने वृजबाल, निरखत फिरत मगन
मन बहार ।।
27.
राग - बहार ताल - झप
कलियन कलियन फिरत भंवरवा ··कोयलिया डारन
डारन कोहक रही आयो री वसंत नवल पात द्रुम,
वेल फूल रही और, लहराय रही वन
सरसो ं ।।
कुंवर श्याम संग भाम, आराम निहरत गावत
वसंत बहार,
कुंजन कुंजन घूमत डोले, फूलन तोरे
बनार्इ वसंत,
प्यारी को रिझावत देकर कर सों ।।
28.
राग - बहार ताल - आडा
राधा प्यारी गर बैआं डारे पिया संग
वन वन सरसाें फूल रही निरख निरख,
हरषत गाव धमार अति आनन्द मन उमंग ।।
पीत वसन पीत भूषन ले रही बसंत,
करत कुंवर श्याम संग खेलत आवत,
मन गावत बहार लेत ताल सुढंग ।।
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